राजधानी के ऐतिहासिक गांधी मैदान में राजद की 'देश बचाओ-भाजपा भगाओ रैली' शुरू हो चुकी है. राज्य में महागठबंधन सरकार के बिखरने और राजद के सत्ता से बेदखल होने के बाद पूरे देश की नजरें इस रैली पर टिकी हुई हैं. जदयू के बागी शरद यादव के अगले कदम का भी इंतजार किया जा रहा है. भाजपा विरोधी रैली में शामिल होकर वह एक तरह से जदयू को कार्रवाई के लिए चुनौती देने की तैयारी कर चुके हैं.
दूसरी ओर भाजपा ने जहां रैली की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाए हैं, वहीं जदयू ने इसे घोटालेबाजों की रैली का करार दिया है. भाजपा का कहना है कि बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित बिहार में इस समय रैली की राजनीति करना जनता के साथ मजाक है.
रैली में भाग लेने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, सीपी जोशी एवं एनसीपी के तारिक अनवर समेत विभिन्न दलों के करीब 21 नेताओं ने सहमति दी है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी एवं बसपा प्रमुख मायावती को भी आमंत्रित किया गया था, किंतु विभिन्न कारणों से उनका कार्यक्रम नहीं बन सका.
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के खिलाफ नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम रहते भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद लालू की मंशा देशभर के भाजपा विरोधी बड़े नेताओं को एक मंच पर लाकर अपनी ताकत दिखाने की है.
राजद की रैली से कुछ बड़े नेताओं ने भले ही किनारा कर लिया है, लेकिन इससे लालू की तैयारियों और तेवर पर कोई खास असर नहीं पड़ा है. भीड़ के जरिए सियासी ताकत का प्रदर्शन उनका पुराना हथकंडा रहा है.
90 के दशक में बिहार में अपनी सरकार के दौरान गरीब महारैला के आयोजनों के जरिए लालू प्रसाद कई बार ऐसा कर भी चुके हैं. इस बार भी पूरी तैयारी है. हालांकि, सूबे के 19 जिलों में पिछले दो हफ्ते से बाढ़ के चलते रैली की भीड़ पर असर से इन्कार नहीं किया जा सकता है. फिर भी लालू के समर्थकों का विभिन्न जिलों से टोलियों में पटना पहुंचना लगातार जारी है.